आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की भाव दृष्टि
संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत के रचयिता, महाकाव्य परंपरा के प्रवर्तक, करुणा रस के जन्मदाता महर्षि वाल्मीकि की भाव दृष्टि भारतीय काव्य चेतना का मूलाधार है। जब एक क्रौंच जोड़े के वियोग में व्याकुल होकर उनके हृदय से स्वत: स्फुरित हुआ *मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम:शाश्वती: समा:। यत्क्रौं चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥* तब केवल एक श्लोक का जन्म […]

