खरी-अखरी : क्या मोदी को हटाकर शाह स्टेयरिंग थामने की प्लानिंग और तैयारी शुरू कर चुके हैं ?
क्या मोदी को हटाकर शाह स्टेयरिंग थामने की प्लानिंग और तैयारी शुरू कर चुके हैं ?
बृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव को लेकर जिस तरह से गृहमंत्री अमित शाह ताने-बाने बुन रहे हैं उससे साफ तौर पर संदेश निकल रहा है कि 2026 आधा बीतते – बीतते बीजेपी में नरेन्द्र मोदी के हासिये पर जाने और अमित शाह के स्टेयरिंग पर बैठने का समय आ रहा है। यह मैसेज केवल बृहन्मुंबई महानगरपालिका और महाराष्ट्र के भीतर मुंबई, पुणे, थाणे, नागपुर, नासिक सहित 29 नगर निगम के चुनाव में अमित शाह का संदेश केवल महाराष्ट्र के भीतर उध्व ठाकरे, राज ठाकरे की गलबहियों भर को नहीं, शरद पवार भर को नहीं बल्कि अपने साथ खड़े एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बाद महाराष्ट्र से बाहर नहीं निकल कर अपनी बैसाखियों चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार के साथ ही जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनमें बीजेपी के पूरे अस्तित्व को हिलाकर रख देने वाले पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार, तेलंगाना के सीएम रेवन्थ रेड्डी, यूपी में अखिलेश कुमार, कार्पोरेट्स या कहें सभी विपक्षी और सहयोगी पार्टियों के साथ देश के आवाम के लिए भी है कि अब जब सब यही मानकर चल रहे हैं कि हम अपने हिसाब से चलते हैं और हमारे लिए कानून कोई मायने नहीं रखता है जिसके दायरे में अदालतें भी आती हैं, पार्लियामेंट भी कोई मायने नहीं रखती है, कान्स्टिटूशन (संविधान) को हमने गायब कर दिया है यानी हम संविधान के दायरे में नहीं संविधान हमारे दायरे में आता है, तो फिर आपको यही राग गाना होगा कि चुनाव तो हम ही जीतते चले जायेंगे यानी अब किसी भी चुनाव को हारने की जरूरत नहीं है। मैसेज तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हेडक्वार्टर नागपुर में बैठे हुए संघ के मुखिया तक भी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को मनोनीत करके पहुंचा दिया गया है। खास बात तो यह है कि जिस शख्स नितिन नवीन को अध्यक्ष मनोनीत किया गया है उसको भी इस बात की खबर नहीं थी कि उसे अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी जा रही है इतना ही नहीं जिस जेपी नड्डा को एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन दिया जा रहा था वह भी अनजान था कि उसके नीचे से कुर्सी खींची जा रही है। यानी देश की सल्तनत को सम्हालने के पहले अमित शाह देश की राजनीति में बीजेपी की सत्ता के रास्ते में आने वाली उन तमाम रुकावटों को खत्म करके उस राजनीतिक सोच के साथ बढ़ना चाह रहे हैं जहां पर अब कोई चुनाव नहीं हारना है और इसकी शुरुआत जनवरी 2026 से किये जाने की प्लानिंग और तैयारी वाली चौसर बिछाना शुरू कर दी गई है। पांसे भी शकुनी की माफिक अमित शाह ही फेंकेंगे। जितना बड़ा यह मैसेज है इसके समानान्तर उतना ही बड़ा मैसेज भारत की राजनीति में खुले तौर पर कार्पोरेट्स और पूंजीपतियों को भी है कि आपको इस देश की उस राजनीति के सहारे चलना है जो राजनीति इस देश के नीतिगत फैसले कार्पोरेट को किस दिशा में, किस सेक्टर में कहां पर कौन सा लाइसेंस चाहिए, किसे आगे बढ़ना है जब वही तय कर रही है तो फिर आपकी दिशा भी उसी दिशा में होनी चाहिए। यानी परिस्थितियां जिस लिहाज से चलेंगी उसमें इस देश की राजनीति को सिर्फ एक ही धारा देखनी है और यह धारा महात्मा गांधी के नाम या पार्लियामेंट में पास होने वाले बिल या फिर इन सबसे हटकर उस संविधान को मत देखिए जिस संविधान को आपने मुद्दा बना लिया है। अब तो चुनाव दर चुनाव उस फैसले को देखिए जो जनता दे रही है और आप मानिये या ना मानिये वह फैसला जनता दे रही है इसको पहले से तय किया जा सकता है। यही सबसे बड़ी प्लानिंग है और सबसे बड़ी तैयारी है। इसमें सिर्फ पश्चिम बंगाल के चुनाव, चुनाव आयोग के जरिए एसआईआर या फिर महात्मा गाँधी को लेकर सीधा हमला भर नहीं है। भले ही पीठ पीछे सहयोगियों की पीठ में छुरा घोंपा जाय या उसे निगल लिया जाय लेकिन जाहिर तौर पर सहयोगियों का भरोसा चाहिए यानी उन्हें साथ में खड़े रहना होगा।
जनवरी की 15 तारीख को महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई महानगरपालिका सहित 29 नगर निगमों के चुनाव में वोटिंग होगी जिसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। मुंबई की महानगरपालिका के चुनाव के मद्देनजर ठाकरे परिवार की दोनों प्रमुख राजनीतिक धाराएं शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अपने वैचारिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए विचारधारा और मराठी अस्मिता की रक्षा के उद्देश्य को लेकर दो दशक बाद मंच साझा कर रही हैं। इसी चुनाव को लेकर गृहमंत्री अमित शाह कुछ ऐसी प्लानिंग और तैयारी चाहते हैं कि बीजेपी इतनी बड़ी जीत हासिल कर ले कि वह एकनाथ शिंदे और अजीत पवार की मदद के बिना अपने बूते बीएमसी पर कब्जा कर ले। तकरीबन 65 बरस पहले मुंबई को लेकर उहापोह थी कि मुंबई महाराष्ट्र के पाले में जायेगा या गुजरात के पाले में जायेगा। इसको लेकर महाराष्ट्र और गुजरात में अपने तौर पर आंदोलन भी हुए। इस आंदोलन को बाला साहब ठाकरे ने भी हवा खाद पानी दिया था। 1960 के फैसले ने तय कर दिया कि मुंबई महाराष्ट्र का हिस्सा रहेगा। इसी आंदोलन के जरिए ही शिवसेना अस्तित्व में आई थी। मुंबई का सवाल उन गुजरातियों के सामने भी आया था जिनके अपने बिजनेस और धंधे का रास्ता मुंबई से होकर गुजरता था। दिल्ली भले ही भारत की राजनीतिक राजधानी हो लेकिन भारत की आर्थिक राजधानी तो आज भी मुंबई ही है। जहां पर देशभर के तकरीबन 500 से ज्यादा कार्पोरेट्स के हेडक्वार्टर मौजूद हैं। दरअसल बृहन्मुंबई महानगरपालिका एक ऐसी पाइप लाइन है जिसके जरिए खुले तौर पर पैसों की आवाजाही होती है। यानी इसका बजट 2025-26 में 74 हजार करोड़ का है। इसलिए शिवसेना हो या बीजेपी इस पर कब्जा करना चाहती है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका बीजेपी के इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उसने अपने तौर पर जो तमाम कार्पोरेट्स की पाइप लाइन काट दी गई है उसे पूरी तरह से पुख्ता करना चाहती है। यानी कार्पोरेट्स के जरिए विपक्ष के खाते में जाने वाला 15-20 फीसदी हिस्सा भी बंद हो जाये वरना मुंबई के भीतर स्थापित पांच सैकड़ा कार्पोरेट्स को चाहे अनचाहे बृहन्मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा करने वाले राजनीतिक दल को पैसा तो देना ही पड़ेगा। अमित शाह की नजर खास तौर पर छत्रपों की पाइप लाइन काटने पर है। जिसके दायरे में उध्व ठाकरे, राज ठाकरे, शरद पवार, एकनाथ शिंदे, अजित पवार सभी आ जाते हैं।
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी जब महाराष्ट्र में चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे तब शिवसेना को निशाने पर लेते हुए उसे बसूली पार्टी कह कर संबोधित किया था। इसके बाद उध्व ठाकरे की शिवसेना को किस तरह तोड़ा गया, शरद पवार की एनसीपी के दो फाड़ कैसे किये गये, इसमें राज्यपाल, चुनाव आयोग यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की क्या और कैसी भूमिका रही है पूरे देश ने खुली आंखों देखा है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका का चुनाव परिणाम तय करेगा कि छत्रपों यानी उध्व ठाकरे, राज ठाकरे, शरद पवार, अजित पवार, एकनाथ शिंदे की राजनीति चलेगी या नहीं यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका एक ट्रिगर है। इतना ही नहीं बीजेपी भले ही दिल्ली में 240 सीटों पर अटकी हुई चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार की बैसाखी पर टिकी हुई है मगर गृहमंत्री अमित शाह बृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव परिणाम के आसरे वह चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार जैसे छत्रपों को भी मैसेज देना चाह रहे हैं कि आप जब तक हमारे साथ, हमारे अनुकूल हैं तभी तक आपकी राजनीति चलेगी अन्यथा सोच लीजिए कि आपका क्या हश्र होगा ना घर के रहेंगे न घाट के। हाल ही में जिस तरह से चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है और खबर है कि दोनों को भरोसा दिया गया है कि जब तक आप हमारे भरोसे को बनाये रखेंगे तब तक आप की सत्ता बरकरार रहेगी। नितीश कुमार ने जिस तरह से एक मुस्लिम महिला का नकाब खींचने की घटिया और निंदनीय हरकत की है उस पर भी चादर डालने का भरोसा गृहमंत्री अमित शाह ने नितीश कुमार को दिया है। यह अलग सवाल है कि चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार को विपक्ष खलनायक के तौर पर रखने से चूकता नहीं है और दोनों के वोट बैंक में भी सेंध लगाने का प्रयास भी करता है।
मुंबई और अन्य नगर निगमों के चुनाव को लेकर जहां ठाकरे परिवार के दोनों ध्रुव एक हो गये हैं इसी कड़ी में शरद पवार चाहते हैं कि विपक्ष एकजुट रहे। लेकिन विपक्ष की एक अहम पार्टी कांग्रेस अकेले नगरीय निकाय चुनाव लड़ना चाहती है। खबर तो यहां तक है कि नागपुर नगर निगम चुनाव में अजित पवार कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में दलित समुदाय की भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है और उसमें प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) और रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के तमाम वे धड़े जो बीजेपी के साथ नहीं है उन्हें भी साथ लेकर एक नये तरीके से लामबंदी करने की योजना विपक्ष बनाना चाहता है। लेकिन सवाल तो पैसे का है, कार्पोरेट्स का है, उसकी पूंजी का है। मैसेज किसी चुनाव को नहीं हारने का है। गृहमंत्री अमित शाह की प्लानिंग है कि जिस तरह से विधानसभा चुनाव में उसे 80 फीसदी से ज्यादा स्ट्राइक रेट मिला था तो यही स्ट्राइक रेट नगरीय निकाय चुनावों में बरकरार रहना चाहिए। बीजेपी के पास जितना पैसा है और वह जितना पैसा चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह बहाती है फिलहाल देश के भीतर कोई दूसरा राजनीतिक दल नहीं है यानी एक तरफ राजा भोज है तो दूसरी तरफ गंगू तेली खड़े हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका में 227 सीटें हैं यानी कब्जे के लिए 114 सीटें चाहिए। बीजेपी 135 सीटों पर लड़ना चाहती है। जिससे वह 80 फीसदी रेट से वोट लेकर अपने बूते महानगरपालिका में कब्जा कर सके। लेकिन बीजेपी इस हकीकत को भी जानती है कि मुंबई सिटी में शिवसेना की यानी उध्व ठाकरे की ही चलती है। बीजेपी के साथ एक तरफ इलेक्शन कमीशन है, दूसरी तरफ कार्पोरेट्स है और तीसरी तरफ वो पैसा है जिस पैसे के आसरे वोटरों को अपने साथ किया जाता है। वह वोटरों के सामने उम्मीदों का एक ऐसा पहाड़ खड़ा करने का माद्दा रखती है जिसको पार करने की ताकत देश के भीतर किसी भी छत्रप के पास नहीं है। मुंबई से निकलने वाला यह मैसेज कोलकाता को भी इस तरह से प्रभावित कर सकता है कि राइटर्स बिल्डिंग के भीतर कंपकंपी पैदा कर सकता है। और राइटर्स बिल्डिंग से निकलने वाला मैसेज अखिलेश यादव की पूरी राजनीति को भी समेट सकता है।
फिलहाल बीजेपी को जितनी जरूरत एकनाथ शिंदे की है उतनी जरूरत अजित पवार की नहीं है। शायद इसीलिए अजित पवार नागपुर में कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। जहां बीजेपी अपने बूते बीएमसी पर कब्जा करने के लिए अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है वहीं एकनाथ शिंदे भी इतनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं कि भले ही बीजेपी 80 फीसदी का स्ट्राइक रेट ले आये लेकिन अपने बूते बीएमसी पर कब्जा ना कर पाये। लेकिन सवाल है कि ऐसे में कितने दिन चलेगी एकनाथ शिंदे की राजनीति ? गृहमंत्री अमित शाह जिस तरह का मैसेज सीएम देवेन्द्र फण्वनीस और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को दे रहे हैं वह भी बहुत साफ है कि मुंबई के भीतर कार्पोरेट युग उसी तर्ज पर लौटना चाहिए जिस तर्ज पर गुजरात के बड़े बिजनेसमैन चाहते हैं और यह एक छत्र राज तब तक संभव नहीं है जब तक आप बृहन्मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा नहीं कर लेते हैं। यानी महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार तब तक अधूरी है जब तक उसके कब्जे में बृहन्मुंबई महानगरपालिका नहीं आ जाती है।
महाराष्ट्र में जिस समय कांग्रेस की सत्ता हुआ करती थी तब अलग विदर्भ राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चला करता था। उस अलग विदर्भ को लेकर बीजेपी नेताओं की भागीदारी भी होती थी। जिसमें नागपुर (विदर्भ) से आने वाले नितिन गडकरी और देवेन्द्र फण्वनीस भी अपने तौर पर सक्रिय रहते थे। तय है कि जब विदर्भ राज्य बनेगा तो उसकी राजधानी नागपुर ही होगी। तो क्या गृहमंत्री अमित शाह के दिमाग में कुछ ऐसी भी प्लानिंग आकार ले रही है जो डीलिमिटेशन को लेकर है। यानी आने वाले समय में बड़े राज्यों को छोटे राज्यों में तब्दील करने का है। जिससे दक्षिण और उत्तर की राजनीति को एक साथ साधा जा सके। परिसीमन को लेकर अक्सर दक्षिण से आवाज उठती रहती है कि जब भी परिसीमन किया जायेगा तो जनसंख्या के लिहाज से उत्तर भारत में जिस तरह से सीटों में बढोत्तरी होगी उसमें दक्षिण भारत की मौजूदगी भारत की राजनीति को प्रभावित करने की दृष्टि से संसद के भीतर भी कोई मायने नहीं रखेगी और उत्तर और दक्षिण के बीच महाराष्ट्र भी एक लिहाज से दोनों के बीच में दरवाजे की तरह खड़ा है। तो क्या बीएमसी चुनाव के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कोई बड़ा व्यापक परिवर्तन नजर आयेगा ? शायद यही है गृहमंत्री अमित शाह के बड़े प्लान की तैयारी !
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार




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