प्रदूषण मुक्त भारत के सपने को साकार करने की दिशा में सामूहिक प्रयास जरूरी*
आधुनिकता की दौड़ में मानव जीवन ने अभूतपूर्व प्रगति की है लेकिन इस प्रगति की कीमत हमारे पर्यावरण को प्रदूषण के रूप में चुकानी पड़ रही है। हमारी जीवन-शैली, औद्योगिक विकास, और परिवहन के साधन, ये सभी जाने-अनजाने में हमारे वायुमंडल में ऐसी जहरीली गैसें और कण छोड़ रहे हैं, जो न केवल प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। आज घरेलू से लेकर औद्योगिक और परिवहन क्षेत्र तक, वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों हैं और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस समस्या के समाधान की दिशा में सामूहिक प्रयास किए जाने लगे हैं।
घरेलू और व्यावसायिक स्रोतों से जहरीली गैसों का उत्सर्जन एक प्रकार से अदृश्य शत्रु का स्वरूप ही है। हम अपने दैनिक जीवन में जिन उपकरणों का उपयोग करते हैं, वे भी वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं। रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर जैसे उपकरण भी वायु को प्रदूषित ही कर रहे हैं। घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ठंडक बनाए रखने वाले एयर कंडीशनर और शीतलन के लिए प्रयोग किए जाने वाले छोटे-बड़े रेफ्रिजरेटर कुछ ऐसे पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) को बढ़ावा देते हैं। हालाँकि पुराने हानिकारक रेफ्रिजरेंट जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उपयोग अब सीमित हो गया है, लेकिन इनके नए विकल्प भी ग्रीनहाउस गैसों के रूप में वातावरण को गर्म करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और गहराती है। टेलीविजन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी पर्यावरण के लिए कम से कम फायदेमंद तो नहीं है।
हमारे घरों में उपयोग होने वाले टेलीविजन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपने निर्माण और संचालन के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से ऊर्जा खपत करते हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा आज भी प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर है। इनके अंत में होने वाले ई-कचरे का अनुचित प्रबंधन भी पर्यावरणीय विषाक्तता बढ़ाता है। औद्योगिक क्षेत्र किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की रीढ़ होता है, लेकिन यह क्षेत्र वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ , जिसमें सल्फर डाइऑक्साइ, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और सूक्ष्म कण शामिल होते हैं। ये हमारे वायुमंडल को दूषित करते हैं। यह चिंता का विषय है कि कई औद्योगिक क्षेत्रों में इस धुएँ को परिष्कृत करने के पर्याप्त या आधुनिक इंतेजामत पूरे नहीं हैं। अपरिष्कृत धुआँ सीधे वायुमंडल में प्रवेश कर एसिड वर्षा और धुंध जैसी समस्याओं को जन्म देता है। औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिए, फैक्ट्रियों को उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण प्रौद्योगिकियों (जैसे स्क्रबर और इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर) को अपनाना अनिवार्य होना चाहिए। गौर से देखा जाए तो परिवहन क्षेत्र भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में कम गुनहगार नहीं है। सड़क, जल, और वायु परिवहन, मानव गतिशीलता के आधार हैं, लेकिन ये जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता के कारण कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों का बड़ा स्रोत हैं।
सड़क परिवहन में प्रयुक्त होने वाले पेट्रोल और डीज़ल वाहन बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन उत्सर्जित करते हैं। यह उत्सर्जन घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता को खतरनाक स्तर तक गिरा देता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बड़े महानगरों में देखने को मिलता है। जब लोगों का खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। जल परिवहन (जहाज़) और विशेष रूप से वायु परिवहन (हवाई जहाज़), जो बेहद तीक्ष्ण ईंधन पर निर्भर हैं, भी महत्वपूर्ण मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। भले ही ये स्रोत सीधे हमारी आँखों के सामने कम दिखते हों, लेकिन वैश्विक उत्सर्जन में इनका योगदान नकारा नहीं जा सकता। परंपरागत रूप से कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन की कुछ प्रक्रियाएँ भी वायु को प्रदूषित करती हैं।
फसल कटाई के बाद किसानों द्वारा खेतों में पराली (फसल अवशेष) को जलाना एक गंभीर मौसमी समस्या है। यह प्रक्रिया बड़ी मात्रा में धुआँ, कालिख और PM 2.5 जैसे महीन कण वातावरण में छोड़ती है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत के बड़े क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक को ‘गंभीर’ श्रेणी तक पहुँचा देती है। अनेक क्षेत्रों से कचरा (ठोस अपशिष्ट) जलाए जाने की घटनाएँ सामने आती हैं। कचरा जलाने से डाइऑक्सिन, फ्यूरान और भारी धातुएँ जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो अत्यधिक विषैली होती हैं और मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ मिट्टी और जल को भी दीर्घकालिक नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में विद्युत उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ताप पर आधारित संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) पर निर्भर है, जो कोयले या अन्य जीवाश्म ईंधनों को जलाकर बिजली पैदा करते हैं। ये संयंत्र CO_2 के अलावा राख और अन्य हानिकारक प्रदूषकों के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। फल स्वरुप वायु प्रदूषण उच्च स्तर को छू रहा है।
यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो हमारे कुछ महानगरों में हालात बेहद चिंताजनक हैं। देश की राजधानी दिल्ली को ही लें तो पूर्व वर्ती सरकारों की गलत नीतियों के चलते वहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) स्तर बार-बार 456 µg/m³ को छूता रहा है और आज भी छू रहा है जो खतरनाक श्रेणी में आता है। इसे नियंत्रित करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा सभी सरकारी और निजी दफ्तरों में 50% कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम अनिवार्य कर दिया गया है। बिना वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र वाले वाहनों को पेट्रोल पंपों पर ईंधन मिलन वर्जित कर दिया गया है। गैर BS-6 मानक वाले वाहनों (विशेषकर बाहरी पंजीकृत) को दिल्ली में प्रवेश करने और ईंधन लेने से रोका जा रहा है। गैर-जरूरी निर्माण और विध्वंस गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। प्रदूषण प्रतिबंधों से प्रभावित निर्माण श्रमिकों को प्रति परिवार 10,000 की वित्तीय सहायता दी जा रही है। प्रदूषण बढ़ने पर स्कूलों को हाइब्रिड से ऑनलाइन मोड पर शिफ्ट करने का निर्देश दिया गया है। ये कदम दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर को नियंत्रित करने और नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए उठाए जा रहे हैं, जिसमें नियम-कानूनों का पालन न करने वालों पर जुर्माना लगाया जाना भी शामिल है।
हालाँकि, केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत (जैसे सौर, पवन और जल विद्युत) अपनाए जाने से एक नई आशा जगी है, जो प्रदूषण के जनक इस क्षेत्र में बदलाव ला सकती है। सब जानते हैं कि वायु प्रदूषण एक बहुआयामी समस्या है, जिसका समाधान केवल सरकारी नीतियों से नहीं, बल्कि समाज की सक्रिय भागीदारी से ही संभव है। सरकार को हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए सख्त नियम बनाने होंगे और उत्सर्जन मानकों को लगातार उन्नत करना होगा। जैसे- इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की महती आवश्यकता है। परिवहन क्षेत्र को डी कार्बोनाइज करने के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार और इलेक्ट्रिक वाहन खरीद पर सब्सिडी देना भी महत्वपूर्ण विकल्प हैं। इस सबके ऊपर बेहतर तरीका एक ही है कि हम और हमारी सरकारें विकास का ताना-बाना कुछ इस प्रकार बुनें कि पेड़ों को काटना ना पड़े। यदि ऐसा करना मजबूरी हो जाए तो पेड़ों को काटने की बजाय उन्हें जड़ से उखाड़ कर दूसरी जगह प्रत्यारोपित करना सुनिश्चित हो। इसके अलावा निरंतर नया वृक्षारोपण किया जाना भी पर्यावरण के स्तर को सुधार सकता है। प्रदूषणकारी उद्योगों पर कड़े दंड अधिरोपित करना समय की जरूरत है।
औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सशक्त बनाना होगा, ताकि वे प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर भारी जुर्माना लगाने के साथ-साथ उन पर कड़ी कार्रवाई कर सकें। सौर, पवन और हरित हाइड्रोजन जैसी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश को बढ़ाना एक अच्छा कदम माना जा सकता है। ‘हरित ऊर्जा गलियारा’ जैसी योजनाओं को गति देना समझदारी भरा कदम कहा जाएगा। जीव मात्र के हित में समाज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इस समस्या के निराकरण हेतु समाज को भी आगे बढ़कर जीव मात्र के हित में वायु प्रदूषण को खत्म करना ही होगा। यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी का विषय है। शुरुआत इस बात से करनी होगी कि ऊर्जा का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। घरों में फाइव स्टार रेटिंग वाले ऊर्जा दक्ष उपकरणों को अपनाना होगा। निजी वाहनों का उपयोग कम करके सार्वजनिक परिवहन, कार-पूलिंग या साइक्लिंग को अपनाना बेहद आवश्यक हो चला है। स्रोत पर ही कचरे को अलग करना और कचरा जलाने से संबंधित किसी भी गतिविधि की रिपोर्ट करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व होना चाहिए।
डॉ.राघवेंद्र शर्मा -विभूति फीचर्स



Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!